खेल कर मिटटी में मिटटी का खिलौना बना मैं,
खेलती है मिटटी मुझसे किसका बिछौना बना मैं,
नाम हुआ मोहब्बत का किसी दिल का कोना बना मैं,
फिर मिल गया मिटटी में क्यूंकि मिटटी से ही था बना मैं
मन को सुलाने और उठाने का हुनर गर आ जाये,
जाने इंसान कितनी मुश्किलों से निजात पा जाये